यू तो मुझे तीन भाषाएँ आती है, हिन्दी मराठी और इंग्लिश । इसमें से सिर्फ हिन्दी ही मेरी सबसे पहली भाषा हैं और मराठी मुझे ठीक ठाक आती है हालाकि एकदम स्पष्ट तौर पर मराठी लोगों जैसे तो नहीं बोल पाता वो होते हैं ना कुछ शब्द जो सिर्फ उस भाषा के लोग ही सही से बोल पाते है बिना गलती किए। अँग्रेजी मेरी काम चलाऊ से थोड़ी ऊपर और गुड से थोड़ी नीचे है बातचीत कर सकता हूं लेकिन जब लिखने की बात आती है तब लिख भी लेता हूं लेकिन काफी सारी व्याकरण गलतियों के साथ लेकिन मेरी इंग्लिश अपनी क्लास में बेस्ट consider की जा सकती है। खैर, अभी बीते सालों से मुझे अंग्रेजी का कुछ ज्यादा ही शौक चढ़ा हुआ है। मैं आजकल हर जगह स्टेटस से लेकर मेरे ब्लॉग्स सब जगह अंग्रेजी का ही प्रयोग करता हूँ और मुझे अंग्रेजी सीखने में काफी मज़ा भी आता है लेकिन मुझे वो tense, verb यह बिल्कुल भी नहीं पसंद में नहीं चाहता किसी भी भाषा को ऐसे सीखा जाये। इंग्लिश मुझे दो कारणों से पसंद है पहला कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है तो बहुत ज्यादा काम की और डिमांड भाषा है और दूसरा कि आप फ्लेक्स कर सकते हैं अपने दोस्तों के सामने 😅।
मैं काफी ज्यादा अंग्रेजी सीखने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता रहता हूँ क्योंकि कई बार लोग राष्ट्रवाद के चक्कर में बात गलत ले लेते हैं। वे सोचते हैं कि हम क्यों सिखे अंग्रेज़ी, हिंदी हमारी मातृभाषा है सभी को यही उपयोग करना चाहिए हर जगह सिर्फ हिंदी ही होनी चाहिए। लेकिन भाषा का मुख्य उद्देश्य लोगों के भावों और विचारों की अभिव्यक्ति करना है और अंग्रेजी एक ऐसी भाषा है जो ब्रिज की तरह काम करती है। आप विश्व के किसी भी कोने में चले जाएं, आपको वहां की भाषा ना आती हो लेकिन अंग्रेज़ी उनमें से कुछ लोगों को जरूर आती होगी जो आपका काम आसान करती है। भारत में ही कितनी भाषाएं बोली जाती है जरुरी नहीं आपको वह भाषा आए लेकिन अगर आपको अंग्रेज़ी आती है तो केरल और तमिल नाडु में आपका काम बन सकता है। और इन सबसे ऊपर जो सबसे जरुरी बात हैं वो है opportunities का भंडार, अंग्रेज़ी कई सारे अवसर भी लाती है मान लीजिए आप किसी जॉब के लिए इंटरव्यू देने बैठे हैं और उनमें करीब 30 लोग बैठे हैं और सिर्फ आप और 3 अन्य कोई लोगों को ही अंग्रेज़ी आती है क्या लगता है किसको जॉब मिलने की ज्यादा संभावना है? जाहिर है उन्हें जिन्हें रीजनल भाषा के साथ अंग्रेज़ी भी आती है। यही कारण है कि मैं अंग्रेज़ी सीखने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता हूँ । अपनी भाषा को गर्व से बोलना अच्छी बात है लेकिन दूसरी भाषा को सिर्फ इसलिए धूतकारना क्योंकि वो भाषा औपनिवेशिकता का प्रतीक है और ब्रिटेन देश के द्वारा यहाँ लाई गई किस हद तक सही है? अंग्रेज़ी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है न सीखकर अपना ही नुक़सान है। भाषा को भाषा के तौर पर लिया जाना चाहिए और जितनी हो सके उतनी भाषा सीखनी चाहिए, भाषाएँ न आने के नुकसान हो सकते हैं लेकिन कई भाषा आने के सिर्फ फ़ायदे ही हैं । इसलिए मेरा एक लक्ष्य हैं की कम से कम 5 भाषा अपनी प्रोफाइल में जोड़ दू ।
अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए
अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए, अन्य देशों को देखो जो पहले अंग्रेजी की कोलोनियों थे, उनके जाते ही फिरसे अपनी मूलभाषा पर वापस आ गए। उस मिस्र (egypt )देखो, चीन को देखो। यह तर्क कुछ प्रो हिंदी लोग देते हैं। जब वे भारत का तुलना अन्य देशों से कर रहे होते हैं तो वे काफी बड़ी चूक कर रहे होते हैं। भारत की भूगोलशास्त्र इन देशों से काफी अलग है, इन देशों की भाषा सिर्फ़ एक ही है जबकी भारत में राज्य छोड़ो जिला बदलते ही भाषा बदल जाती है, इतने विस्तृत देश में एक भाषा को लागू नहीं किया जा सकता। अंग्रेजी भाषा एक तरह से यूनिफ़ाई करने का काम करती है, जैसा कि हमने ऊपर भी देखा कि दक्षिण भारतीय राज्यों के लोगों को हिंदी आए यह जरूरी नहीं लेकिन कई सारे लोगों की दूसरी भाषा अंग्रेजी जरूर है। अंग्रेज़ी भारत जैसे देश को एक मीडियम ऑफ़ कम्युनिकेशन देती है, आप नॉर्थईस्ट से लेकर साउथ सभ जगह के लोगों को आपस में कनेक्ट करती है। हाँ आप यह बोल सकते हैं कि दूसरी भाषा हिंदी भी तो हो सकती है हाँ बिलकुल हो सकती है क्यों नहीं हो सकती लेकिन भाषा का काम ही मुश्किल चीज़ों को सरल करना है, तो यह काम अंग्रेज़ी करे या हिंदी ज्यादा खास फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए। अपनी भाषा पे गर्व होना और दूसरी भाषा के प्रति ईर्षा होना अलग-अलग चीज है लेकिन इनके बीच सिर्फ़ एक धुंधली सी ही लाइन होती है। कब आप गर्व से ईर्षा की तरफ चले जाओ पता नहीं चलता। भाषा सहूलियत की भाषा होनी चाहिए जो सहूलियत दे
खैर, इसका एक राजनीतिक संदर्भ है, अगर आप पॉलिटिक्स में दिलचस्पी रखते हैं तो बात की गहनता को समझ गए होंगे।
मेरे साथ भाषा का कुछ अलग ही खेल है, जब बात से अगर किसी चीज़ को समझाना हो तो मेरे लिए हिंदी सबसे पहले प्रिफ़रेन्स है और मैं उसी का प्रयोग करता हूं। मेरी फ़ेयरवेल स्पीच भले ही हिंग्लिश थी लेकिन 80 से 90 प्रतिशत उसमें हिंदी ही थी और वही जब बात लिखने की हो तब मैं हिंदी के साथ अपने आप को असहज पाता हूं, इसलिए मैं फिरसे हिंग्लिश का इस्तेमाल करता हूं जिसमें अंग्रेज़ी ज्यादा और हिंदी कम होती है। अब यह रिश्ता क्या कहलाता है यह तो मुझे नहीं पता लेकिन अगर आपको पता हो तो आप कमेंट्स में बता देना। "लेकिन कुछ भी बोलो हिंदी का अपना एक अलग ही फ़ील है " यह वाक्य शत प्रतिशत सत्य है। अख़िर मेरे ब्लॉग्स की शुरुआत भी हिंदी से हुई थी, मेरी डायरी की शुरुआत भी हिंदी से ही हुई थी, मेरी बोलने की शुरुआत भी हिंदी से ही हुई थी (शायद मराठी)। खैर, यह एक रहस्य है, मै कुछ नहीं कह सकता। अच्छा, अब अगर पढ़ने में थोड़ा सा आनंद आया हो तो लाइक करें, बिना मत जाना। मिलता हूँ किसी नए लेख के साथ।
पढ़ने के लिए शुक्रिया :)
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